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    बढ़ते छतीसगढ़ की आवाज

    हाल-ए-हलचल – नकाब या बेनकाब

    ByYug Bharat

    Feb 21, 2023

    दुश्मन न करें…दोस्त ने वो काम किया है…जिंदगी भर का गम हमें इनाम दिया है….

    भिलाई। भले ही तीन दिन से सभी को पता था, क्या होना है, किसके यहां दबिश है…कुछ रोक नहीं सकते। फिर भी चमचागिरी की हद तो तब हो गई जब सुबे के मुखिया रात को अचानक पांइट देकर सभी को एलर्ट करते हैं। रात 3 बजे गश्त के लिए दबाव बनाते है। अधिनस्त भी क्या करें बेचारे, मजबूर है। हुआ भी ऐसा ही, सुबह दल बल के साथ फेरी लगाते रहे , इधर सफेद गाड़ियों में दबिश हो गई। जमकर दिन भर हंगामा हुआ, लेकिन नतीजा शिफर निकला। भजन कीर्तन, हवन सब चलता रहा खुब प्रसाद भी बंटा….पर कुछ काम नहीं आया।

    हुआ यूं कि तड़के दो दोस्तों की एक कार्यक्रम में जाने की तैयारी थी। सफेद रंग की कार में तीन अफसर आकर एक दोस्त के पास रुकते है। उससे पुछते हैं, कि साहब का घर कहां है। दोस्त को लगा कल का माल मशुक्रा बच गया है वहीं देने आए है। दोस्त भी अफसरो को लेकर साहब के घर चला जाता है। बस फिर क्या जैसे ही दोस्त को पता चला कि ये तो गिफ्ट देने नहीं लेने आए हैं। फिर क्या चुपचाप दुम दबाकर दोस्त साहब के घर से गायब हो जाता है। लेकिन तब से बस यही गाना बज रहा है दोस्त ने जो काम किया है…जिंदगी भर का गम हमें इनाम दिया है।

    अब अंधेरा होता है, फिर एक अफसर अपनी गाड़ी से पहुंचते है. बड़े ठाठ से, लेकिन साहब को अचानक पुराना वाक्या याद आता है। पिछले बार अफसर ऐसे ही रंगदारी दिखाने ट्रैक सूट में चले गए थे। दमदारी दिखाते ही ऐसी मुंह की खानी पड़ी थी कि छट पट घर गए और वर्दी लगाकर दोबारा पहुंचना पड़ गया था। इस बार साहब को लगा कहीं ऐसा न हो कि अधिकारी पहचना जाए और लेने के देने पड़ जाए। वैसी भी एक दोस्त पहले से दफ्तर के चक्कर काट रहा है। पूरे स्टेट में थू थू हो रही है। साहब ने खुद को होशियार समझकर वर्दी के उपर ट्रैक सूट का अपर चढ़ाया और गाड़ी को अंधेरे में खड़ा करके बंगले के चक्कर काटने लगे। हां और ये अकेले नहीं थे,जो ऐसा कर रहे थे,और कई थे तो इसी काम में सुबह से जुटे हुए थे। कहतें है पुरा चक्कर शराब के पैसों के लेनदेन का है। देखों जल्ही का पन्नों में लिखकर आएगा।

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